हाइकु 29 / लक्ष्मीनारायण रंगा

सागर मन
सै‘वै ताप-त्रास तो
बादळ-जन्में


हर तारे री
रोसणी नईं पौंचै
धरती ताईं


लोक-जीवण
मानखै रै मूल्यां रो
अखी खजानो

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