Last modified on 9 मई 2011, at 19:03

हाथ - २ / नरेश अग्रवाल

सभी पल मेरे शांत
एक रेशम के वस्त्र की तरह
और तुम्हारा स्नेह मेरे हृदय को छूता हुआ
बाहर कितना अधिक कोलाहल
फिर भी मैं तुम्हारी गहराई में उतरता हुआ,
चांद तारे उड़ रहे हैं आसमान में
सारे पत्तों में परछाई
और डालियों जैसे कोमल हाथ तुम्हारे
रखे हुए मेरे पीछे
जैसे किसी संगमरमर की शिला पर टिके हुए।