अल्लापुर
इलाहाबाद का वह मुहल्ला
जहाँ सायकिल चलाते या
पैदल हम घूमा करते थे।
वहीं रहती थीं वो लड़कियाँ
जिन्हें देखने के लिए
फेरे लगाते थे हम दिन भर।
मटियारा रोड पर रहती थीं
पूनम, रीता, ममता, वंदना
नेताजी रोड पर
चेतना, कविता, शिवानी।
कस्तूरबा लेन में रहती थीं
ऋचा, सुमेधा, अंजना, संध्या।
बाघम्बरी रोड पर रहती थी
एक लड़की
जो अक्सर आते-जाते दिखती थी
वह शायद प्राइवेट पढ़ती थी।
बड़ी आँखे-बड़े बाल
अजब चेहरा मंद चाल।
दिन भर खड़ी रहती थी छत पर
कपड़े सुखाती अक्सर,
हजार कोशिशों के बाद भी
नहीं पता चला
उसका नाम - पोस्ट ऑफिस में करता था उसका पिता काम
हालाँकि
यह वह वक्त था जब हम
लड़कियों के नोट बुक के सहारे
जान लेते थे उनके सपनों को भी।
हजार कोशिशों पर
पानी फिरा यहाँ......
बाद में पता चला
वह ब्याही गई एक तहसीलदार से
शिवानी की शादी हुई वकील से
वंदना की दारोगा से, रीता की बैंक क्लर्क से,
चेतना की कस्टम इंस्पेक्टर से,
संध्या विदा हुई रेल टी.टी. के साथ
सुमेधा किसी डॉक्टर के साथ
ऋचा किसी व्यापारी की हुई ब्याहता
अंजना किसी कम्पाउंडर की,
पूनम की शादी हुई किसी दूहाजू कानूनगो से।
ममता की शादी नहीं हुई
बहुत दिनों.....
देखने-दिखाने के आगे बात नहीं बढ़ी...।
कई साल बीत गये हैं
टूट गया है इलाहाबाद से नाता
छूट गया है अल्लापुर....
दूर संचार के हजारों इंतजाम हैं पर
नहीं मिलती ममता की कोई खबर,
उसकी शादी हुई या बैठी है घर,
अब तो किसी से पूछते भी लगता है डर।
कैसा समाज है, कैसा समय है,
जहाँ मुहल्ले की लड़कियों का
हाल-चाल जानना गुनाह है,
व्यभिचार है,
पर क्या ममता के हाल-चाल की
मुझे सचमुच दरकार है ?