Last modified on 2 जनवरी 2009, at 20:47

हिंसा / कुसुम जैन

हिंसा की भाषा
बड़ी सख़्त
बड़ी भारी
और
ऎंठी हुई होती है

मृत
शरीरों की तरह

फिर भी
कोई इसे
न दफ़नाता है
न जलाता है