Last modified on 7 मई 2019, at 00:38

हिन्दी / सुरेन्द्र स्निग्ध

तुम कौन हो ?
कौन हो तुम ?
क्या बक-बक कर रहे हो
साफ़-साफ़ बोलो न!
बोलते वक़्त डांस क्या करते हो !
— डाँटते हैं नेताजी एक प्रोफ़ेसर को
एक दूसरा प्रोफ़ेसर दान्त निपोड़कर बोलता है —
हुज़ूर, पागल है, पागल !
यहीं इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफ़ेसर है —
हिन्दी की वक़ालत करता है, हुज़ूर,
हिन्दी की वक़ालत,
नाम लेता है, लोहिया या फिर कर्पूरी ठाकुर का ।

अच्छा, अच्छा, बोलो
जल्दी बोलो
ड्रामा-उरामा मत करो — नेताजी थोड़ा नरम होते हैं ।

और फिर दहाड़ते हैं नेताजी —
ऐसे-ऐसे प्रोफ़ेसरों ने
कर दी है दुर्गति देश की,
ये ही बनाते हैं इंजीनियर
हिन्दी मीडियम से पढ़ाएँगे !

सोचिए तो सही —
क्यों एक भी पुल सही-सलामत नहीं है ?
क्यों एक भी सरकारी मकान दुरूस्त नहीं है ?
बात समझ में आ गई न !

लोहिया का नाम लेता है
कर्पूरी ठाकुर का नाम लेता है !
यह नहीं सोचता है
यह सन् तिरानबे है — तिरानबे,
आज अगर लोहिया या कर्पूरी रहते
तो क्या अँग्रेज़ी जाने बिना —
राजकाज चला पाते ?
दुश्मन हैं वे सारे लोग
जो करते हैं अँग्रेज़ी का विरोध

सोचिए,
अगर अँग्रेज़ी आती तो
हमारे मुख्यमन्त्री जी
नहीं हो जाते पूरे देश के नेता
वे प्रधानमन्त्री होते
प्रधानमन्त्री !

लोहियाओं या कर्पूरियों ने
सीमित कर दिया है इन्हें ।

आप कुछ नहीं समझेंगे,
कुछ नहीं ।
पिछले तीन साल से हूँ मैं
ऊपरी सभा का सदस्य
कभी मैंने अपनी जुबान खोली है वहाँ !
कभी नहीं,
क्यों ?

पूरा सन्नाटा छा जाता है दरबारियों के
बीच,
एकदम सन्नाटा

दिन दहाड़ते हैं नेताजी
मुझे अँग्रेज़ी नहीं आती

इसलिए कहता हूँ
आपलोग अपने बाल-बच्चों को
जनम से साथ ही अँग्रेज़ी पढ़ाइए
और सामाजिक न्याय पाइए !