बाँहें उठाये अर्घ्य देते हैं
ऋषियों सरीखे चीड़
दूर उन चोटियों के पार
वह देखो हिमोदय।
बरसती है बर्फ
मौन आशीर्वाद-सी,
प्रसाद-सी।
सब कुछ सामधिस्थ।
कहीं अन्दर बहते सोते-सा नीरव
बजा जाता है
तुम्हारे स्मरण का संगीत।
(1977)
बाँहें उठाये अर्घ्य देते हैं
ऋषियों सरीखे चीड़
दूर उन चोटियों के पार
वह देखो हिमोदय।
बरसती है बर्फ
मौन आशीर्वाद-सी,
प्रसाद-सी।
सब कुछ सामधिस्थ।
कहीं अन्दर बहते सोते-सा नीरव
बजा जाता है
तुम्हारे स्मरण का संगीत।
(1977)