Last modified on 5 मार्च 2011, at 16:56

हिम प्रात / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

हिम प्रात
(पर्वतीय जीवन की सृष्टि)
उठे जुगाली करते पशु,
उनके कंठों की
मंजु घंटियों से मुखरित
निर्जन- वनस्थली।
भोर हो गयी, उठे ग्वाले
मृदु-मुरली के स्वर
लगे गुंजाने फिर गिरि के पथ
निर्जन सुन्दर।
( हिम प्रात कविता का अंश)