जबसे पाँव पड़ल धरती पर
माथ अन्हरिया करिया छावे।
मँझधार में जीवन बीतल
दुखवे ई जीये सिखलइलस,
सुख के तीरे खाड़ भइल बस
हमरा किस्मत पर मुसुकइलस,
सहज सनेहो तींते लागे
हमके जग एतुना भरमावे।
बाहर से बस भींजल बानी
अन्तर घट रह गइल पियासल,
हाय दइब, ई भाग बा कइसन
इचिको केहू नाहीं दुलारल।
पोंछ सके मावत के स्याही
ढिबरी नाहीं केहु जरावे।
के केतना नीमन लागन लागल हऽ
के केतना हमरा के चाहल
अब त खाली ईहे देखीं
केतना के के साथ निबाहल,
अइसन उजड़ल बाग डाढ़ि में
कवनो फूल खिले ना पावे।