हुआ करे है,
एक और मन
ऊधौ मन के आसपास ही।
हुआ करे है
एक और मन।
अगर किया कुछ ऐसा,
वैसा हो सकता था,
करने से पहले, करते भी
मैं थकता था।
पड़े न हों जो इस उलझन में
होंगे वो फिर (बाल्मीकि या) वेद व्यास ही।
कोई नहीं बताता भंते!
कहाँ गए धु्रव?
आज विभाजित मन के द्वारे
छपे नहीं शुभ।
संधि न मन की रही शक्ति अब।
संकट में है अब समास भी।
ग्वाल, गोपियों औ राधा-से-
हो न सके, हम,
सोलह आने नर-मादा-से
हो न सके हम।
ओस चाटने से ऊधौ!
बुझती है क्या कभी प्यास भी?