मुर्गा बोला-’जल्दी उठकर
अगर न दूँ मैं बाँग,
हो न सवेरा, सूरज दादा
कभी न पाएँ जाग’।
सूरज दादा मुस्काएँ, सुन-
‘कुकड़ूँ-कूँ’ की बात;
छिटकी वह मुस्कान धरा पर,
स्वर्णिम हुआ प्रभात’।
[नंदन, जून 1997]
मुर्गा बोला-’जल्दी उठकर
अगर न दूँ मैं बाँग,
हो न सवेरा, सूरज दादा
कभी न पाएँ जाग’।
सूरज दादा मुस्काएँ, सुन-
‘कुकड़ूँ-कूँ’ की बात;
छिटकी वह मुस्कान धरा पर,
स्वर्णिम हुआ प्रभात’।
[नंदन, जून 1997]