Last modified on 16 अक्टूबर 2013, at 11:33

हेली-2 / ताऊ शेखावाटी

न्यारा-न्यारा चरित जगत में झालो दे’र बुलावै है ।
सोच समझ की बोल म्हारी हेली! तूँ कांई बणणे चावै है ।।

कुबदगारी घणी’रै कतरणी, कतर-कतर टुकड़ा करदे
सुगणी सूई टुकड़ो-टुकड़ो जोड़-जोड़ सिलकी धरदे
एक करै दौ टूक हमेसां, दूजी मेळ मिलावै है।
सोच समझ की बोल म्हारी हेली! तूँ कांई बणणे चावै है ।।

सदां बिखेरै नाज दळंती, चलती चक्की बोछरड़ी
चूल समावै चून समूचो मांड्यां छाती पड़ी रै पड़ी
एक दुतकारै दूर भगावै, दूजी हिए लगावै है।
सोच समझ की बोल म्हारी हेली! तूँ कांई बणणे चावै है ।।

लौह लकड़ी स्यूं दोनूं बण्योड़ा, इक बंदूख’र इक हळियो
दोन्यां नै हीं हरख मानखो, हांड रयो रै कांधे धरियो
एक बहावै खून चलै जद, दूजो अन्न निपजावै है।
सोच समझ की बोल म्हारी हेली! तूँ कांई बणणे चावै है ।।

त्रेता जुग में राम और रावण, दोनूं हीं हा रणबंका
एक अमर होग्यो दूजै की लुंटगी सोने की लंका
कह कवि कवि ताऊ मिनख सदां हीं करणी को फळ पावै है।
सोच समझ की बोल म्हारी हेली! तूँ कांई बणणे चावै है ।।