यह क्या
रोज़-रोज़
तरबतर खून से
अख़बार फेंक जाते हो तुम
घर में मेरे ?
तमाम हादसों से रँगा हुआ
अंधाधुंध गोलियों के निशान
पृष्ठ-पृष्ठ पर स्पष्ट उभरते !
छूने में.....पढ़ने में इसको
लगता है डर,
लपटें लहराता
जहर उगलता
डसने आता है अख़बार !
यद्यपि
यही ख़बर सुन कर
सोता हूँ हर रात
कि कोई कहीं
अप्रिय घटना नहीं घटी,
तनाव है
किन्तु नियंत्रण में है सब !