सफर जिनगी के कठिन हे खूब, लेकिन
आदमी के बहुत ऊँचा हौसला हे।
जाने हे मेहनत के मंतर, हाथ जिनकर-
करम के पूजा में जे हरदम रमल हे।
जीत के ओहे लिखय अजगुत कहानी-
चाल जिनकर बिन रुकल हे, बिन थकल हे।
चिन्ता नञ फुरसत के कि सोचे ठहर के
जनम के अब तक की हासिल, की गीला हे।
आन्ही- पानी लू-लपट के फिकिर कइसन-
मचा के उत्पात ई, जा हइ गुजर फिर।
दु:ख-दरद के बाढ़ भी एक दिन थमे हे-
एक जइसन समय कब रहले हे आखिर।
बिध्न-बाधा के तऽ कोय एतने ही जाने-
जिनगी तो संघर्स के बस सिलसिला हे।
हो अगर संकल्प पक्का आदमी के –
सामने टिक कहाँ पावय हइ रे मुश्किल।
हार के बैठय नञ रहिया में कभी तो-
पास अपने आप ही आ जा हइ मंजिल।
ठान ले मन में, लगन- धुन जो अटल हो-
पहुँच से बाहर नञ तब कोय फासला हे।