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‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलेरा’ की याद में / शिवप्रसाद जोशी

जिसे कहते हैं कामना
बस अब किसी वक़्त किसी भी वक़्त
पूरी नहीं होती

इस तरह बहुत दूर तक वक़्त टंगा है
इंतज़ार के बहुत लंबे तार में
फड़फड़ाता रहता है
एक बहुत बड़ा सवाल
कब तक आख़िर कब तक
की पुकार
झन्न-झन्न बजती हुई
वजूद के कान में

गर्दन झुकाए बुदबुदाता जाता वह
हमेशा हमेशा।