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बस कंठ नीले ना हुए हैं / वैभव भारतीय

ज़हर हम सबने पिया
बस कंठ नीले ना हुए हैं
जी गया सुकरात बस
दर्शन नशीले हो गये हैं।

क्यों कहो दुनिया अजब है
महज़ गिनती में सजग है
जब तलक है साँस जग में
तुम अलग हो, सब अलग हैं।

ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
युद्धों से कुछ-कुछ मेला खाता
रख दिये हथियार जिसने
रह गया वह ही अभागा।