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बाग़बानी के उसूलों को नहीं छोड़ा है / नफ़ीस परवेज़

बाग़बानी के उसूलों को नहीं छोड़ा है
 रंग-ओ-बू देख के फूलों को नहीं छोड़ा है

कम से कम छाँव तो होगी ही दरख़्तों के तले
सोच कर हमने बबूलों को नहीं छोड़ा है

आदमी आदमी को समझे यही काफ़ी है
वरना इंसाँ ने रसूलों को नहीं छोड़ा है

राब्ता सबसे बनाया है तिरे कूचे में
बे-सबब के भी फ़ुज़ूलों को नहीं छोड़ा है

साथ चलने का सबक़ याद रखा है हमने
राह भटके हुए भूलों को नहीं छोड़ा है