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मौत आनी थी हमें वो आ गई / धर्वेन्द्र सिंह बेदार

मौत आनी थी हमें वह आ गई
ज़िंदगी को मौत आख़िर खा गई

ज़िंदगी का मिट गया नाम-ओ-निशांँ
मौत तू ये क्या क़यामत ढा गई

जिस्म गर मर भी गया तो क्या हुआ
रूह तो ला-फ़ानियत को पा गई

लाख चाहा होंठ सीना मौत ने
ज़िंदगी लेकिन तराना गा गई

मौत ने माना लड़ाई जीत ली
जंग में पर ज़िंदगी तू छा गई

तू लड़ी बेख़ौफ़ होकर मौत से
ज़िंदगी तेरी अदा ये भा गई