Last modified on 11 जुलाई 2011, at 10:47

'डिस्को' के गाँव / कुमार रवींद्र

कौन कहे
कितने हैं फिसलन के ठाँव
अँधे आलोकों में डूबे थिरक रहे पाँव
 
दिवास्वप्न देख रहीं
सूनी दीवारें
पैरों के आसपास
घिरतीं मँझधारें
 
फ़र्शों पर दलदली गुफ़ाओं के दाँव
 
कपटी इच्छाओं की
बाँहों में लिपटी
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
अपराधों से चिपटी
 
खोज रहीं आकृतियाँ बस आदिम छाँव
 
बंद आसमानों की
चर्चा में डूबे
रोज़ सुखी होने की
आदत से ऊबे
 
पागलपन ढूँढ़ रहे 'डिस्को' के गाँव