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'भक्त' नाम लगता अति प्यारा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

‘भक्त’ नाम लगता अति प्यारा, भक्ति सहज ही भाती है।
लोगोंकी चर्चा कि ‘भक्त यह’ मनको बहुत सुहाती है॥
‘भक्त-भक्ति’के गुण-कीर्तनमें जिह्वा भी ललचाती है।
किंतु भक्तकी ‘जीवनचर्या’ जीवनमें नहिं आती है॥
भक्त जगत्‌‌का मोह त्याग सब, करते तुमसे अविरल प्रीति।
बनकर रसिक विराग-रागके, नित्य निभाते रसकी रीति॥
सभी छोडक़र सबमें रहते, करके ग्रहण अनोखी नीति।
सदा तुम्हें सर्वत्र देखते, कभी कहीं न मानते भीति॥
देख तुम्हें निज मन-मन्दिरमें पल-पलमें प्रमुदित होते।
केवल तुम्हें रिझानेको खाते-पीते, जगते-सोते॥
संतत स्मरण-परायण रहते, क्षणभर व्यर्थ नहीं खोते।
प्रेम-वारि सिचनकर, नित्य तुम्हारे चरण-कमल धोते॥