१- अपने घर की गली में
खेलते हुए हमारा बचपन
सुरक्षित तो था,
लेकिन आज वह गली भी
अपरिचित,दहशतभरी सी लगती है
कौन जाने? कब किसी की
लाश मिल जाए?
२- कभी अँधेरी गलियों से,
गुजरते हुए भय नहीं लगता था
किन्तु आज
रोशनी से नहाई
सड़कों से गुजरने में भी,
दहशत होती है।
३- एक समय था,जब
घर,खेत, पनघट
और गली में,
बनिताएँ सुरक्षित तो थीं,
किन्तु आज?
घर की पक्की चारदीवारी में भी
वे सुरक्षित कहाँ हैं?