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अंगिका बुझौवल / भाग - 2

तोहरा कन गेलाँ
लेॅ केॅ बैठलाँ।
पीढ़ा

तोहरा कन गेलाँ
खोली केॅ बैठलाँ।
जूत्ता

चानी हेनोॅ चकमक, बीच दू फक्का
जे नै जानेॅ, जे नै जानेॅ ओकरोॅ हम्में कक्का।
दाँत

हिन्हौ टट्टी, हुन्हौ टट्टी
बीच में गोला पट्टी।
जीभ

हाथ गोड़ लकड़ी पेट खदाहा
जे नै बूझै ओकरोॅ बाप गदहा।
नाव

फरेॅ नै फूलै, ढकमोरै गाछ।
पान

जड़ नै पत्ता, की छेकोॅ ?
अमरलत्ता

तोहरा घरोॅ में केकरोॅ पेट चीरलोॅ।
गेहूँ

चलै में रीमझीम, बैठै में थक्का
चालीस घोॅर, पैतालीस बच्चा।
रेल

खेत में उपजै, हाट बिकाबै
साधूब्राह्मण सब कोय खाबै
नाम कहैतें लागै हस्सी
आधा गदहा, आधा खस्सी।
खरबूजा

लाल गे ललनी, लाल तोरोॅ जोॅड़
हरिहर पत्ता, लाल तोरोॅ फोॅर।
खमरूआ

राग जानै गाना नै जानै
गाय ब्राह्मण एक्को नै मानै
जों कदाचित जंगल जाय
एक हापकन बाघौ केॅ खाय।
मक्खन

हमरोॅ राजा केॅ अनगिनती गाय
रात चरै दिन बेहरल जाय।
तारा

हिनकी सास आरो हमरी सास दोनों माय घी
तोहें बूझोॅ हम्में जाय छी।
ससुरपुतोहू

साँपोॅ हेनोॅ ससरै, माँड़ रं पसरै
सभै छोड़ी केॅ नाक केॅ पकड़ै।
पोटा

एक गाछ मनमोहन नाम
बारह डार, बारह नाम।
बरस, दिन, तिथि

एक जोगी आवत देखा
रंगरूप सिन्दूर के रेखा
रोज आबै, रोज जाय
जीवजन्तु केकरो नै खाय।
सूरज