अंगूठे के साथ कटकर जो गिरा
वह दलितों का दल था।
सकपकाकर जो सिहरी वह ज्ञान-तृष्णा थी
माउस पर तर्जनी दबाते वक़्त
सीमा पार कर
वापस आ रहा है
एकलव्य
फिर भी पीछे है,
मूँछ पर ताव देकर
दक्षिणा के लिए मुँह ताकता
वह चालाक
द्रोण
ज़ेरी और टोम
छप्पर को जलाए बग़ैर...
अनुवाद : एम० एस० विश्वम्भरन