कभी लगे छू के देखूँ
कभी घबराऊँ
कभी अपना सा लागे
कभी कतराऊं
है अंजाना कैसा रिश्ता
मैं समझ ना पाऊँ
बहती नदिया थाम लूँ या
हवा बन इतराऊँ
कभी लगे रोकूँ खुद को
कभी इठलाऊँ
तोड़ के बंधन ये सारे
वक्त सा बह जाऊँ।
कभी लगे छू के देखूँ
कभी घबराऊँ
कभी अपना सा लागे
कभी कतराऊं
है अंजाना कैसा रिश्ता
मैं समझ ना पाऊँ
बहती नदिया थाम लूँ या
हवा बन इतराऊँ
कभी लगे रोकूँ खुद को
कभी इठलाऊँ
तोड़ के बंधन ये सारे
वक्त सा बह जाऊँ।