दिन भर की जी-हुज़ूरी के बाद
किसी शाम घण्टों
हम अपने ड्राइंग रूम में
बहस के मुद्दे में
अथवा शहर के चुनिन्दा
कॉफ़ी हाउस में
बहस के मुद्दे में बरबस
भ्रष्टाचार को लपेट लेते हैं
व्यवस्था को ताने देते हैं
तन्त्र को सूली चढ़ाते हैं
और रोटी को जुमला बना
बार-बार, उछालते हैं
मेरे भाई!
धारा के ख़िलाफ़
तैरने के अंजाम से
डरने वाले
ही बहस-मुबाहिसों में
होते हैं शामिल.