अंतिम मिलन
(शिव के अद्वैत सिंद्वांत का चित्रण)
म्ेारी बाहें
सरिताओं से आकुल होकर
दिशा दिशा में खोज रही हैं
वह प्रिय सागर
जिसे हृदय पर धर कर
मिलती शान्ति निरन्तर
जिसकी छवि में खो जाता
युग युग को जीवन
जिसे देख कर कुछ न दीखता
फिर पृथ्वी पर
मेरी बाहें
खोज रही हैं वह प्रिय सागर
(अंतिम मिलन कविता का अंश)