हृदय का परिवार काँपा अकस्मात ।
भावनाओं में हुआ भूडोल-सा ।
पूछता है मौन का एकांत हाथ
वक्ष छू, यह प्रश्न कैसा गोल-सा:
प्रात-रव है दूर जो "हरि बोल!"-सा,
पार, सपना है--कि धारा है--कि रात ?
कुहा में कुछ सर झुकाए, साथ-साथ,
जा रहा परछाइयों का गोल-सा ।
प्राण का है मृत्यु से कुछ मोल-सा;
सत्य की है एक बोली, एक बात ।
( १९४५ में लिखित )