अन्त? कब, कहाँ, किस का अन्त? दोनों ही असम्भव... इस बढ़ते हुए अन्तरावकाश के कारण किसी दिन वह तेजोराशि अदृश्य हो जाएगी- और तू, क्षुद्र पक्षी, तू शून्य में भटकता रह जाएगा- शायद खो जाएगा... पागल, तेरा खेल समाप्त नहीं होगा! दिल्ली जेल, 27 जून, 1932