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अंधेरी रातों में / कुँअर रवीन्द्र

इन अंधेरी रातों में
सुबह का इंतजार मत करो
मशाल खुद जलाओ
सूखती उम्मीद को हरा करो
 
दिन बहुत उमस भरे और खराब हैं
नसीहतों. सलाहियतों का वक़्त अब नहीं रहा
प्यासे मर जाओ कि
उसके पहले
कुआं तुम्हे ही खोदना है
 
रोशनी तो होगी ही
बस इसी यकीन पर
एक बार फातिहा पढ़ कर आमीन तो कहो