Last modified on 29 अगस्त 2013, at 18:18

अंधेरों के दरख़्त / रति सक्सेना

परछाइयों के बीज़
कुछ इस तरह बिख़र गए
पिछवाड़े

कि खड़े हो गए रातो-रात
अंधेरों के दरख़्त
फूल खिले फिर फल
टपक पड़े बीज़ फट

दरख़्तों से उगे पहाड़
पहाड़ों से परछाइयाँ
पौ फटनी थी कि
छा गया अंधेरा पूरी तरह।