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अंध-काल / महेन्द्र भटनागर

सावधान पहरुओ !

सावधान !


छा रहे अनेक दैत्य

छीनने स्वतंत्रता मनुष्य की,

वेगवान अंधकार

लीलने किरण-किरण भविष्य की,

सावधान सैनिको !

सावधान !


आज घिर रहीं प्रगाढ़

रक्त-वर्षिणी भयान बदलियाँ,

व्योम में कड़क रहीं

विनाशिनी अधीर क्रूर बिजलियाँ,


विश्व-शान्ति रक्षको !

सावधान !