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अकथ कथा / निलय उपाध्याय

1.

एक है राम लगन
दूसरा सी टहल

दुनिया के साथ
दुनिया से अलग

बैठे रहते है
पीपल के नीचे
इस तरह ताजगी से भरे
जैसे धरती का दूध पीकर हुए हों जवान

जैसे अभी-अभी ज़मीन से निकले हो
और फ़ेंक दिया हो कंछा

जैसे अभी-अभी गई पुरवा के
झोकें से टकराकर
टपके हों
पीपल के पेड से दो गोदे

2.

अगर ऐसा हो
कि पीपल के सारे पत्ते पूड़ी हो जाएँ
और पोखर का पानी दही
तो मजा आ जाए

क्यो भाई राम लगन

हाँ भाई सी टहल

अपनी नवीन कल्पना पर
लोट-पोट हँसते रहे
देर तक
फिर एकाएक चुप

लगा जैसे
कुछ ग़लत निकल गया हो
मुँह से
चुप्पी के बीच
पसर गया था चेहरे पर
दुनिया के बासीपन का स्वाद

3.

भर लगन
इनकी दुनिया दौड़ती है
बुँदिया की बाल्टी और हाथी के
कान जैसी पूड़ी पर..

शादी हो
बाराती बन जाएँ
रात भर नाच देखें
जम कर खाएँ

मौत हो तो जय श्री राम
माथे पर टीका लगा
बन जाएँ
बाभन

जाते समय अधिकार से लें
भोजन की दक्षिणा भी..

ईख का गुल्ला
चने का होरहा,
गेहूँ की उमी, बाजरे का सूरका,
मकई का पकौड़ा और जोन्हरी की मुका-मुकी
कितना कुछ दिया है धरती ने जब
हाथ खोलकर
तो कठिन नही है धरती पर जीना
वैसे भी काम करने से अब
किसी का पेट नही भरता
और अकल हो तो कोई
भूखा नही मरता

ये देखिए
पूड़ी और आलू परवल की सब्जी

ये देखिए
रसगुल्लों की बिछलहर

ये देखिए
रस भरी इमरती जलेबी...

और ये छिलबिल दही..

बोल भाई राम लगन
हाँ भाई सी टहल ।