पंचायत भवन के सामने
जुटी
डेढ़ सौ की भीड़
चुनने हैं उसमें से
तीस निर्धनतम मजदूर
अकाल राहत के लिए।
अचंभा है
खाते-पीते लोग भी
बेताब है
अपनी लुगाई का नाम
मस्टर-रोल में लिखवाने को।
अकाल
जमीन पर ही नहीं
जेहन में भी है
सोच का।
पंचायत भवन के सामने
जुटी
डेढ़ सौ की भीड़
चुनने हैं उसमें से
तीस निर्धनतम मजदूर
अकाल राहत के लिए।
अचंभा है
खाते-पीते लोग भी
बेताब है
अपनी लुगाई का नाम
मस्टर-रोल में लिखवाने को।
अकाल
जमीन पर ही नहीं
जेहन में भी है
सोच का।