Last modified on 29 जून 2010, at 13:51

अकाव / प्रदीप जिलवाने


बेमतलब नहीं
उनका उगना।

कुछ इच्छाएँ
कहीं भी हो जाती पैदा

खिल जाते
इच्छाओं के फूल कभी भी.
00