जब भी अकेला
महसूस करना, कुछ दूर पैदल चलना
फिर कहीं कोई पेड़ दिखे, लिपट जाना उससे, क्षण बीतते ख़ुद जानोगे, पहले जैसे
ख़ाली नहीं हो; लौटते लगेगा, साथ पेड़ भी है, कन्धे पर हाथ रखे, बतियाते; पेड़ तो
पेड़ ही, लेकिन अपना माननेवालों को, घर तक छोड़ने आता है — उदास
होता, बाबा बताते; समझाते — बेटा, यह जीवन है, जीने की
कला सरग से नहीं आती, इसलिए सीखना
हो, मानुस से नहीं, किसी पेड़ से
सीखना कि अकेले
होकर भी
हरा कैसे रहा जाता है !