मौत हो जाएगी जब अक्षरों की
और उन्हें लात से धकेल कर
दफ़न कर दिया जाएगा किसी कब्र में
शब्द बैठा होगा दाग़ लिए
सर मुंडाए
तब ये कविताएँ चीख-चीख कर रोयेंगी,
रुदाली बनकर।
साल दर साल उस कब्र में उगते रहेंगे
ये लफ्ज़ घास की मानिन्द
और लहलहा जाएंगे
फिर से...