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अक्सर / अशोक तिवारी

अक्सर

अक्सर मेरी यादों में एक चेहरा आता है
लीक छोड़कर नई-नई जो राह बनाता है
सपनों की बुनियाद रखी थी जो सालों पहले
आज उन्हीं सपनों में कोई सेंध लगता है
गिरकर उठना, उठकर चलना, चलते ही जाना
घोर मुसीबत में भी वो जो हँसकर गाता है
काम नहीं आसान बनाना एक ऐसी दुनिया
ऊंच-नीच और शोषण का जो नाम मिटाता है
यार हक़ीक़त बात यही है बोझिल मन सारे
जोश भरो, कुछ काम करो, ये कहकर जाता है

14/07/2011