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अगर चितरते रहे चाव से / नईम

अगर चितरते रहे चाव से
इनकी दुम
उनके दुमछल्ले।

तय है
ठीक समय पर जमकर
बोल नहीं पाएँगे हल्ले।

रहे जगाते, पर कब जागे?
सदियों से ये ऊपर वाले,
ठिये-ठिकाने/धरती पर जो
उन पर साँकल, पहरे ताले।

कभी न मिलने देंगे हमको
ये बिचौलिये
या वो दल्ले।

इतिहासों से ढूह खोह में
सोए भूत जगाने बैठे,
साफ-पाक बगुलों के जैसे
तट पर मूढ़ सयाने बैठे।

ये हमको
चुगकर मानेंगे
अगर पडे़ हम इनके पल्ले।

जलते प्रश्न/बुझते बैठे,
गड़ुये भर-भर तीरथजल से,
रस के बिम्ब प्रतीक
घिस गए
हंगामों में रक्तकमल से।

मरे हुओं को
मार रहे हैं
भद्रलोक के निपट निठल्ले।
अगर चितरते रहे इनकी दुम, उनके दुमछल्ले।