अगर चितरते रहे चाव से
इनकी दुम
उनके दुमछल्ले।
तय है
ठीक समय पर जमकर
बोल नहीं पाएँगे हल्ले।
रहे जगाते, पर कब जागे?
सदियों से ये ऊपर वाले,
ठिये-ठिकाने/धरती पर जो
उन पर साँकल, पहरे ताले।
कभी न मिलने देंगे हमको
ये बिचौलिये
या वो दल्ले।
इतिहासों से ढूह खोह में
सोए भूत जगाने बैठे,
साफ-पाक बगुलों के जैसे
तट पर मूढ़ सयाने बैठे।
ये हमको
चुगकर मानेंगे
अगर पडे़ हम इनके पल्ले।
जलते प्रश्न/बुझते बैठे,
गड़ुये भर-भर तीरथजल से,
रस के बिम्ब प्रतीक
घिस गए
हंगामों में रक्तकमल से।
मरे हुओं को
मार रहे हैं
भद्रलोक के निपट निठल्ले।
अगर चितरते रहे इनकी दुम, उनके दुमछल्ले।