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अगर तुमको समन्दर देखना था / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’

अगर तुमको समन्दर देखना था
मेरे दिल में उतर कर देखना था

बड़ी मुश्किल खड़ी थी मेरे आगे
मुझे रहजन में रहबर देखना था

उसे भी ग़ैर से फुर्सत नहीं थी
हमें भी चाँद शब भर देखना था

हमारे ऐब गिनवाने से पहले
तुम्हें भी अपने अंदर देखना था

सुकूं छीना है जिसने ज़िन्दगी का
मुझे उस ग़म का महवर देखना था