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अगर मैं हो पाता / अशोक वाजपेयी

अगर मैं हो पाता
उसकी आँखों में पानी की लकीर,
उसके कुचाग्रों का कत्थईपन,
उसकी जाँघ पर पसीने की बूँद,
उसकी शिराओं में से एक में
रक्त जो उसके हृदय से
भाग रहा होता शुद्ध होकर,
एक पुस्तक पर धूल का धब्बा
जिसे वह सप्ताह भर नहीं खोलेगी,
हवा
जो उसके ऊपर गरमाहट-भरी छाई है
जब वह गहरे सोई है,
बर्फ़ का एक फ़ाहा
जो खिड़की के बन्द काँच पर चुपचाप बैठा उसे
निहारता है।

अगर मैं हो पाता...