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अगर हो सके तो वह अपनी प्रीति पुरानी भेज दो / रंजना वर्मा

प्रियतम यदि संभव हो तो कुछ याद सुहानी भेज दो।
अगर हो सके तो वह अपनी प्रीति पुरानी भेज दो॥

मुमकिन यदि होता पंखुड़ियों का
अतीत लौटा पाना,
तो कहती बन कर बसंत तुम
एक बार फिर आ जाना।

प्यासे तन मन की तड़पन को
शक्ति दे सके जो अब मेरे,
पलकों में प्रतिबंधित है जो
छलके नहीं नयन से तेरे।

भेज सको तो वही आँख का खारा पानी भेज दो।
अगर हो सके तो वह अपनी प्रीति पुरानी भेज दो॥

सांस सांस से प्रतिपल चुंबित
थी अनुभूति अनछुई कोई,
अंतर्मन में उतरी चितवन
अनजाने ही स्नेह भिगोई।

बेध गया मन के कपोत को
कभी अचानक आकर था जो,
तोड़ गया यादों, सपनों के
सुंदर ताजमहल को था जो।

ठोकर पुनः लगा जाये वह मन अभिमानी भेज दो
अगर हो सके तो वह अपनी प्रीति पुरानी भेज दो॥