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अगवाणी / सत्यप्रकाश जोशी

आगा हो जावो बा’सा
अणसम मारग में क्यू बैठा हो।
दीसै कोनी, सूरज रो आवै है रथ अठीनै।
चिगदीज जावोला,
किता वेग सूं आवै है, देखो-देखो,
इण रा आवेगा सूं आखती-पाखती ऊठणवाळी
थे थांरी जांणौ,
थोड़ी वळा फेर टिकणो होवै
तौ उण धुड़ता ढूंढा री भींतां लारै
छींया में बैठ जावो बा’सा,
सूरज रौ वेगवान रथ अठीनै इज आवै है।

वो देखौ इंगरेजी बोलतौ थारौ पड़पोतो
रीस आवै जद हंसण लाग जावै,
बारै बैठा उडीकतां, उणनै सरम कोनी आवै,
जद ना कैवणौ होवै, वो हां बोल जावैं

अर कैड़ौ तौ बदळाव आयो-
कै टाबर-टाबर कोनी रह्या,
टाबरां ज्यूं रमै है मोट्यार,
गरीब गुरबा ज्यूं कारी लाग्योड़ा गाभा पैरै रईस,
धरन गुरू घड़ी-घड़ी परणीजै,
अर जणा-जणा कनै, सोवती धीवड़ियां गरभीजै कोनी।

तौ अेकांनी-सिरक जावो सचबोला बा’सा,
चौरी कुण कोनी करै ?
कुण कोनी-छिपावै अपरा करम ?
छळ कपट रौ ई है औ महाभारत,
थांनै यूं ई कोनी दीसै बा’सा
मिनख रा बदळता मन री कालायां
थांनै कीकर सूझै।

वो आवै है सूरज रो सतरंगो रथ,
नया-नया औजार अर हथियार
उठा लिया है मिनख।
नया-नया नसा-पता,
नागा रैवण नै पैरियोड़ा नया-नया गाभा।
बगत री तौ मिटगी सगळी ओळखांण
रात होयग्या दिन,
अर दिन होयगी रातां,
थांनै उठाय अेक कांनी धरण नै
कोनी रूकैला मिनखां रा पवनवेगी यान।

हां बदळग्या’ सैं कीं बदळग्या
बगत, अकास, अरथ, धरम, प्रीत, कांम,
औ धमीड़ थे कोनी सै सकोला बा’सा
आगा हो जावो,

सिरक जावो अेक कांनी
उठी छीयां में जावो परा,
आवै है हित्यारा सूरज रौ निपग्गो रथ।
आवै है।