जहाँ न्याय पर लाठी बरसे, वह शासन क्या शासन
अश्रु-गैस  के  गोले  छूटे,  पानी की  बौछारें
लोकतंत्रा जब ऐसा खूनी, किसको कहाँ पुकारें
अगहन की जब जले दामिनी, जल जाए सिंहासन !
सिंहासन के सम्मुख  नारी की  है खींचा-तानी
यह तो काल महाभारत को आमंत्राण है देना
कोई शेष  रहेगा  कैसे, जिसकी  भी हो  सेना
समय लिखेगा यह भी कलि की ऐसी क्रूर कहानी !
दिल्ली, तुम किसकी हो, बोलो; सत्ता की, नारी की 
बहू-बेटियाँ घर में भी क्यों ऐसी हैं भयभीत 
कानों में  शीशे-सा  गलता  सत्ता  का  संगीत
कहो राजपथ, तेरे घर में कैसी यह तारीकी !
न्यास माँगते बच्चे-युवती पर प्रहार हो स्वाहा !
लोकतंत्रा का गला दबोचे, वह सरकार हो स्वाहा !