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अग्नि-पुरुष / सूर्यकान्त ठाकुर

हम अग्निपुरुष संसारक छी।
युगसँ अभिशापित जीर्ण जगक
हम ज्वाल-किरण संहारक छी।
जड़ता जगतीमे व्यापि रहल,
मृत्युंजय हम छी पीबि गरल,
संसार हलाहलसँ उबरत
युग-पीड़ित मानवताक हेतु
हम क्रान्तिक धार-प्रवाहक छी।
हम अग्नि पुरुष संसारक छी।
अविकसित कुसुम नित झड़ि जाइछ,
करुणा रौद्रक पद पड़ि जाइछ,
अछि कोटिक कोटि निरन्न नग्न,
दोसर दिस तरुणी-सुरा-मग्न
नवज्योति बारि शलभक अन्तक
हम अग्निक पुंज प्रसारक छी।
हम अग्नि पुरुष संसारक छी।