Last modified on 29 दिसम्बर 2009, at 01:41

अचानक / मिक्लोश रादनोती

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: मिक्लोश रादनोती  » अचानक

अचानक एक रात दीवार चलती है
सन्नाटा दिल में बिगुल की तरह गूँजता है और एक कराह फड़फड़ाकर उड़ती है
दर्द पसलियों में चाकू भोंकता है--उनके पीछे वह धड़कन भी चुप हो जाती है
जो तकलीफ़ देती थी
सिर्फ दीवार चीख़ती है, शरीर उठता है, गूंगा और बहरा।
और दिल, हाथ और मुँह जानते हैं--हाँ, यह मौत है, यह मौत है।

जैसे जब जेल में बिजली झपकती है
तो अन्दर सारे कैदी और बाहर पहरा देते सारे संतरी
जानते हैं कि कैसे उस वक़्त एक ही आदमी के शरीर में सारी बिजली एक साथ दौड़ रही है
बल्ब को चुप ही रहना है, कोठरी से एक साया गुज़रता है
और अब संतरी, कैदी और कीड़े जानते हैं कि जिसे वह सूंघ रहे हैं
वह जले हुए आदमी का माँस है।


रचनाकाल : 20 अप्रैल 1942

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे