अच्छा हुआ कभी भी
इतना ऊँचा न हुआ मेरा माथ
कि टकराता किसी पहाड़ से
इतना नीचा भी नहीं कि
झुक झुक जाता जगह-जगह पर
अच्छा हुआ कभी भी
इतना सुन्दर न हुआ मैं
कि ढलती काया देख देख
दुखी होता
यह ठीक ही रहा तुमने
मनुष्य मानकर किया स्नेह
और मैं देवताओं के गुनाहों से
बच गया।