चलो आज इतने हो जाएँ निर्भीक
निकलें रात में सैर करने
चारों तरह सन्नाटा है राज करता हुआ
और मेरे कदमों की आहट
तोड़ती हुई उसके घमंड को
लेकिन जाएँ तो जाएँ कहाँ
कोई काम नहीं, कोई मकसद नहीं
आज हल्की सी भी ओस नहीं
न ही कहीं कुहासा आँखों को रोकता हुआ
सब कुछ साफ-साफ खुले आकाश में
और फिर भी खुश नहीं
उदास हूँ, कुछ भी नहीं चाहिए मुझे
न ही किसी का इंतजार
जल्दी ही ऊब जाता है मन
चलो वापस चलें
शरीर इतना बड़ा अजगार
देर तक माँगता है आराम।
सुबह अच्छी हो तुम
हमेशा रहता है तुम्हारा इंतजार।