अगर दिया ना होता
एकलव्य ने द्रोण को अंगूठा
तब इतिहास कुछ और ही होता
मगर एकलव्य कैसे करता इंकार
मांग रहा था कोई ब्राह्मण
हाथ फैलाकर भिक्षा
किसी अछूत से पहली बार
रचनाकाल:1993
अगर दिया ना होता
एकलव्य ने द्रोण को अंगूठा
तब इतिहास कुछ और ही होता
मगर एकलव्य कैसे करता इंकार
मांग रहा था कोई ब्राह्मण
हाथ फैलाकर भिक्षा
किसी अछूत से पहली बार
रचनाकाल:1993