यह इनार ऐसा वैसा नहीं था
दलित आत्मसम्मान आत्माभिमान का
एक अछूता रूपक बन गया था यह
इनार की जगत पर हमारे दादा का नाम
नागा बैठा खुदवाया और
खुद रह गयीं नेपथ्य में
कि औरत होकर अपना नाम
सरेआम कैसे करतीं दादी
कि कितनी परंपराएं अकेले तोड़तीं दादी