देखें तो कौन रहता है इस घर में
किसी आश्चर्य की आशा
धीरज से हाथ बाँधे खड़ा
मैं देता दस्तक दरवाज़े पर
सोचता-कितना पुराना है यह दरवाज़ा
सुनता झाडि़यों में उलझती हवा को
ट्रैफिक के अनुनाद को
सुनता अपनी सांस को बढ़ती एक धड़कन को
पायदान पर जूते पौंछता
दरवाज़े पे लगाता कान
कि लगा कोई निकट आया भीतर दरवाज़े के
बंद करता आँखें
देखता किसी हाथ को रुकते एक पल सिटकनी को छूते
निश्वास जैसे अनंत सिमटता वहीं पर,
भीतर भी
बाहर भी
मैं ही जैसे घर का दरवाज़ा
अजनबी बनता
पहचान बनाता
रचनाकाल: 28.2.2006