तुम्हें टोह लेने पर भी
मैं, तुम्हारे व्यक्तित्व की
आड़ी-तिरछी रेखाओं को
कोई रूप दे पाने में
असमर्थ रही हूँ...!
गत वर्ष की
धुआंधार बरसात में
हम दोनों
साथ-साथ भीगे थे,
पर आज--
उन्हीं भीगते संबंधों पर
टूटन की काई उग आयी है,
जिस पर से हम
निरंतर फिसलते जा रहे हैं,
हमारे हाथ
एक-दूसरे की पकड़ से
दूर/बहुत दूर
हो गये हैं/होते जा रहे हैं।
संबंधों की उकताहट को जीते हुए/
अंधाधुंध शिकायतों की
सीमायें लाँघते हुए
जब, पीछे मुड़ कर
अपना अतीत देखते हैं, तब
उन सूत्रों को ढूँढ़ना
असंभव हो जाता है,
जो हमें
अपराधी करार दे सकें।